धर्म डेस्क:-मकर संक्रांति क्यों मनाते हैं ? यह प्रश्न जितना आसान लगता है इसका जवाब उतना आसान नहीं है। तो चलिए जानते है – देश ने लोहड़ी के पर्व पर न केवल गर्मजोशी से स्वागत किया बल्कि मकर संक्रांति के जयकारे और पोंगल की शुभकामनाएं देने के लिए कमर कस ली है। हां, यह वास्तव में लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल से शुरू होने वाले शीतकालीन फसल त्योहारों की श्रृंखला के रूप में सबसे खुशी का अवसर है।
पिता और पुत्र के आपसी मतभेद को दूर करने और अच्छा संबंध स्थापित करने के लिए सूर्य इस दिन शनि देव की राशि मकर में प्रवेश करते हैं। तब से इस संक्रांति को मकर संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन ही बाणों की सज्जा पर लेटे भीष्म पितामह ने अपना देह त्याग कर मोक्ष की प्राप्ति की थी। ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव की अपने पुत्र शनि से कभी नहीं बनी थी, लेकिन मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव उन्हें क्षमा कर देते हैं। इसलिए यह त्योहार क्षमा करने और पिछले झगड़ों को भूलने के लिए भी है।
मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है?
हमारे हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बेहद खास महत्व है। ऐसा माना जाता है कि, दिव्य सूर्य स्वयं अपने पुत्र शनि के घर आते हैं, और शनि मकर राशि के स्वामी हैं। इसलिए आज इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। आज पवित्र गंगा नदी भी धरती पर अवतरित हुई है, इसलिए मकर संक्रांति का पर्व भी मनाया जाता है।
मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही क्यों मनाई जाती है?
मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है। जो कि कभी भी नहीं बदलता है। भले ही तिथियों का छाए हो जाए, अधिक मास हो या मलमास हो लेकिन मकर संक्रांति 14 जनवरी तारीख को ही होती है। इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। और यह 6 मास उत्तरायण ही रहते हैं। इन छह मास में सूर्य मकर राशि से लेकर मिथुन राशि तक संचरण करेंगे। उसके बाद वहां कर्क राशि से लेकर धनु राशि तक दक्षिणायन होकर संचरण करेंगे। इसीलिए यह एक निश्चित समय होता है। जिसमें सूर्य 14 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए प्रत्येक 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति मनाया जाता है। हालांकि 14 जनवरी को यह सूर्य का मकर राशि में प्रवेश कभी रात में भी होता है। इसलिए 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।
तिल के बीज और पतंग का महत्व?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज ने तिल के बीज को आशीर्वाद दिया था और तब से यह अमरता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए तिल का विशेष महत्व है और इसे सर्वश्रेष्ठ अनाज के रूप में पूजा जाता है। इस त्योहार के लिए पतंग महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह त्योहार बसंत की शुरुआत का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि लोग अब अधिक समय बाहर बिता सकते हैं। पतंग उड़ाना हमेशा से मकर संक्राति की परंपरा रही है।
गुड़ का सेवन?
मकर संक्रांति के मौके पर चावल और गुड़ का इस्तेमाल मिठाई और व्यंजन बनाने में किया जाता है। इन व्यंजनों को भगवान को चढ़ाया जाता है। चावल को समृद्धि का प्रतीक भी माना गया है।
मकरसंक्रांति मे पतंग उड़ाने की प्रथा
मकरसंक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की यह प्रथा काफी पुरानी है। इस दिन पतंग उड़ाने की यह प्रथा इसलिए चली आ रही है क्योकि सर्दी के मौसम मे धूप बहुत कम निकलती है और हम सभी अधिकतर अपने घरो मे ही रहते हैं जिसकी वजह से हमारे शरीर पर इंफेक्शन और बैक्टीरिया हो जाते हैं। इस दिन पतंग उड़ाने के बहाने हम धूप मे काफी देर तक रहते है। मकरसंक्रांति के दिन जब सूर्य निकलता है तो उसकी किरणों मे बहुत से ऐसे तत्व होते हैं जो सर्दियों मे हमारे शरीर पर इंफेक्शन और बैक्टीरिया के आ जाने से उन्हें समाप्त कर देते है।
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(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
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