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Showing posts from October, 2022

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बाबा खाटू श्याम जन्मदिन : Baba Khatu Shyam Birthday

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श्याम बाबा (Khatu Shyam Baba) का जन्मदिवस पंचांग के अनुसरा, देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाया जाता है. यह तिथि आज 23 नवंबर 2023 के दिन है. यानी आज खाटू श्याम बाबा ( Khatu Shyam Baba Birthday ) का जन्मदिवस मनाया जा रहा है. श्याम बाबा के जन्मदिन के खास मौके पर आप अपनों को बधाई दे सकते हैं. आइये आपको श्याम बाबा के जन्मदिवस (Khatu Shyam Birthday Wishes) के लिए खास शुभकामना संदेश के बारे में बताते हैं।  हिन्दू पंचांग के अनुसार श्री खाटू श्याम जी की जयंती प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसी दिन देवउठनी एकादशी भी पड़ती है। इस दिन श्री खाटू श्याम जी की विधिवत पूजा के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के भोग भी अर्पित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि श्री खाटूश्याम जी भगवान कृष्ण के कलियुगी अवतार हैं। राजस्थान के सीकर में श्री खाटू श्याम की भव्य मंदिर स्थापित है। मान्यता है कि यहां भगवान के दर्शन मात्र से ही हर मनोकामना पूरी हो जाती है। कौन थे श्री खाटू श्याम जी? शास्त्रों के अनुसार श्री खाटू श्याम जी का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। वे पांडु के पुत्र भीम के पौत्र...

जानिए माता सती का जन्म और विवाह कैसे हुआ

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दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थी। सभी पुत्रियां गुणवती थीं। फिर भी दक्ष के मन में संतोष नहीं था। वे चाहते थे उनके घर में एक ऐसी पुत्री का जन्म हो, जो सर्व शक्तिसंपन्न हो एवं सर्व विजयिनी हो। जिसके कारण दक्ष एक ऐसी हि पुत्री के लिए तप करने लगे। तप करतेकरते अधिक दिन बीत गए, तो भगवती आद्या ने प्रकट होकर कहा, मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं। तुम किस कारण वश तप कर रहे हों? दक्ष नें तप करने का कारण बताय तो मां बोली मैं स्वय पुत्री रूप में तुम्हारे घर  में  जन्म लुंगी । मैं सती के रूप में जन्म लेकर अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगी। फलतः भगवती आद्या ने सती रूप में दक्ष के यहां जन्म लिया। सती दक्ष की सभी पुत्रियों में सबसे अलौकिक थीं। सतीने बाल्य अवस्था में ही कई ऐसे अलौकिक आश्चर्य चलित करने वाले कार्य कर दिखाए थे, जिन्हें देखकर स्वयं दक्ष को भी विस्मयता होती रहती थी। जब सती विवाह योग्य होगई, तो दक्ष को उनके लिए वर की चिंता होने लगी। उन्होंने ब्रह्मा जी से इस विषय में परामर्श किया।सती विवाह भगवान शिव से करवा दिया।    एक बार देवलोक में ब्रह्मा ने धर्म के निरूपण के लिए एक सभा का आय...

जानिए भगवान शिव को माता सती का त्याग क्यों करना पड़ा।

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भगवान शिव और सती माता पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए महर्षि अगस्त्य के आश्रम में गए और उनके मुख से रामकथा सुन कर आत्म विभोर हो उठे। कुछ दिन वहां रहने के बाद भगवान शिव और सती माता वापस कैलाश की ओर चल पड़े।  कैलाश की ओर जाते हुए भगवान शिव विचार कर रहे थे कि किस प्रकार प्रभु श्री राम के दर्शन किए जाएं? तभी दंडकवन से गुजरते हुए उनकी दृष्टि श्री राम और लक्ष्मण पर पड़ी। रावण माता सीता का हरण कर ले गया था। श्री राम और लक्ष्मण सीता जी की खोज में भटक रहे थे। भगवान शिव उनके दर्शन कर भाव विभोर हो गए उचित समय न जानकर उन्होंने उन्हें अपने असली रूप से साक्षात्कार नहीं करवाया।माता सती के मन में श्री राम के प्रति संदेह उत्पन्न हुआ।उन्होंने सोचा अगर यह सच में भगवान श्री हरि विष्णु का ही रूप हैं तो अपनी पत्नि ती खोज में दर दर क्यों भटक रहे हैं  भगवान् शिव माता सती के अंतर्मन में क्या चल रहा है जान गए।उन्होंने माता सती से कहा,देवी ! यदि आपके मन में प्रभु श्री राम को लेकर कोई संदेह है तो आप उनकी परीक्षा ले सकती हैं।माता सती ने माता सीता का रूप धारण कर लिया और श्री राम के समीप चली गई। श्री राम ने उन्हें...

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सोमवार व्रत और कथा

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सोमवार का दिन देवों के देव महादेव और चन्द्र ग्रह को समर्पित है। कुंवारी कन्याएं मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए यह व्रत करती हैं। इस दिन सफ़ेद रंग के कपड़े पहनना और इसी रंग की चीजों का दान करना विशेष फलदाई है। हिंदू धर्म में सोमवार का दिन साक्षात् जगत पिता भगवान शिव को समर्पित है। बहुत से लोग सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं।  कुछ लोग सोमवार के दिन व्रत भी  करते है जिससे  भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं और जीवन में आने वाली हर बाधाओं को दूर करते हैं।   भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है, शिव जी बहुत भोले हैं वे भक्त की भावना मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों के सब दुख हर लेते हैं। सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। और शिवलिंग पर जल से अभिषेक करना चाहिए। यह दिन चंद्र ग्रह का दिन होता है। हिंदू धर्म में भगवान शिव  को सभी देवी देवताओं में सबसे बड़ा माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव ही दुनिया को चलाते हैं। वह जितने भोले हैं उतने ही गुस्‍से वाले भी हैं। शास्‍त्रों के मुताबिक सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा की जाती  ...

जानिए, सूर्य देव ने शनि देव को अपना पुत्र माने से इंकार क्यों किया

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धर्म डेस्क । पौराणिक कथा के अनुसार, कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्यनारायण की पत्नी स्वर्णा (छाया) की कठोर तपस्या से ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि का जन्म हुआ था। माता ने शंकर जी की कठोर तपस्या की तेज गर्मी व धूप के कारण माता के गर्भ में स्थित शनि का वर्ण काला हो गया। इस तप ने बालक शनि को अद्भुत व अपार शक्ति से युक्त कर दिया।  संज्ञा की छाया का नाम संवर्णा रखा गया। आगे चलकर सूर्य देव की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से शनि देव को जन्म हुआ। भगवान शनि देवता का वर्ण बेहद श्याम था। लेकिन जब सूर्य देवता को इस बात का पता चला कि संवर्णा उनकी अर्धांगिनी नहीं है, तो सूर्य देवता ने शनिदेव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। शनिदेव न्याय के देवता कहे जाते हैं। शनि देव ने भगवान शिव से वर मांगा था, 'मुझे सूर्य से अधिक शक्तिशाली व पूज्य होने का वरदान दें।  इस पर शिव जी ने कहा कि तुम नौ ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाने के साथ ही सर्वोच्च न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे।  साधारण मानव तो क्या देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर, गंधर्व व नाग सभी तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे' मान्यता के अनुसार, शनिवार क...

शनिवार को हनुमान जी पूजा कैस करनी चाहिए

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शनिवार के दिन स्नान के बाद मंदिर में जाकर तांबे के बर्तन में जल और सिंदूर मिलाकर हनुमान जी को अर्पित करें। इसके बाद उन्हें गुड़, चना और केला चढ़ाएं। उनके सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं और हनुमान जी के मंत्र 'श्री हनुमंते नमः' का जाप करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥ मान्यता है कि इस मंत्र का जाप करने से भगवान हनुमान प्रसन्न होते हैं, वे अपने भक्तों को सुख एवं समृद्धि प्रदान करते हैं। साथ ही अपने भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं और दुखों को दूर करते हैं। हिंदू धर्म में शनिवार के दिन व्रत रखकर शनि देव की विशेष पूजा- अर्चना करने का विधान है।  इस दिन शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाया जाता है। पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। शनि देव को तेल चढ़ाना शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में दान का विशेष महत्व होता है। भक्त यदि शनिवार के दिन व्रत रहकर शनिदेव और हनुमान जी की विधि पूर्वक पूजा करे उसके बाद  ग़रीब और जरुरत मंद व्यक्ति को सरसों का तेल, भोजन आदि दान करें, तो...

शनि देव के दुष्प्रभाव को दूर करने लिए भक्त हनुमान जी की पूजा क्यों करते

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शनि देवता के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए भक्त शनिवार को भगवान हनुमान की पूजा करते हैं। मंगलवर को भी भगवान हनुमान की पूजा के की जाती है।  फिर भी शनि से जुड़ी कथा के कारण शनिवार को अधिक महत्व माना जाता है। जिस प्रकार सोमवार भगवान शिव को समर्पित है, उसी तरह शनिवार  शनि देव  का दिन माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन शनि देव की पूजा  करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही इस दिन शनि दोष से छुटकारा पाने के लिए भक्त शनि देव को सरसों के तेल का दीया से पूजा की जाती  है। शनिवार को शनि देव की पूजा के अलावा हनुमान जी  की पूजा भी की जाती है। शनिवार को हनुमान जी की पूजा करने शनि दोष शांत होता है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर शनि देव की पूजा करने से हनुमान जी क्यो प्रसन्न होते हैं ? इसके बारे में एक पौराणिक कथा आती है ।  पौराणिक कथा के अनुसार जब हनुमान जी सीता माता को खोजते हुए लंका जाते है तो उनकी नजर शनि देव पर पड़ती है।हनुमानजी ने शनि देव से पूछा कि आप यहां कैसे ? तो शनि देव ने बताया कि रावण ने उन्हें अपने शक्ति के बल पर कैद कर लिया है। शनि देव की बात...

भगवान गणेश जी के बिना मानी जाती है माँ लक्ष्मी पूजा अधूरी जानिए कहानी

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दिवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, मां लक्ष्मी के साथ गणेश भी पूजा होती हैं। पुराणों के अनुसार दिवाली पर रात को पूजा के बाद मां लक्ष्मी घरों में घूमती रहती हैं, भक्तों का मानना है कि मां उस दिन पृथ्वी पर आशीर्वाद देने के लिए रहती हैं. दिवाली की रात मां लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा का विशेष महत्व है, चलिए जानते हैं क्या है इसके पीछे का कहानी  सनातन धर्म में किसी भी पूजा-पाठ में गणपति की पूजा पहले होती है, उनसे ही किसी भी काम की शुरुआत की जाती है. लक्ष्मी पूजन में विष्णु जी का नहीं गणेश जी का होना जरूरी माना गया है. गजानन की पूजा के बिना दिवाली पर धन की देवी की उपासना अधूरी मानी जाती है.पौराणिक कथा के अनुसार बैकुंठ में मां लक्ष्मी और विष्णु जी चर्चा कर रहे थे तभी देवी ने कहा कि मैं धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सौहाद्र देती हूं, मेरी कृपा से भक्त को सर्व सुख प्राप्त होता है. ऐसे में मेरी ही पूजा सर्वश्रेष्ठ है।  मां लक्ष्मी के इस अहम को विष्णु जी ने भांप लिया और उनके अहंकार को तोड़ने का फैसला किया।  विष्णु जी ने कहा देवी आप श्रेष्ठ है लेकिन संपूर्ण नारीत्व आपके पा...

धनतेरस पर इन चीजो करे खरदारी और ना करे इन चीजो खरदारी को वर्ष भर सताएगी तंगी

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धनतेरस पर भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। धनतेरस पर भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।  धनतेरस पर यदि आप स्टील और एलुमिनियम के बर्तन खरीदने की सोच रहे हैं। तो यह विचार छोड़ दे। इस दिन स्टील और एलुमिनियम के बर्तनों की खरीदना अशुभ माना जाता है। इसकी जगह पीतल या तांबा खरीदना शुभ होता है। धनतेरस के शुभ दिन पर कांच और प्लास्टिक का बर्तन खरीदना अशुभ होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कांच संबंध राहु से होता है। धनतेरस के दिन इन चीजों लाने से आपके सर पर राहु का खतरा मंडरा सकता है। धनतेरस को लेकर बाजार में खरीदारों की भीड़ उमड़ रही है। पूजा के लिए घर में एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और वस्त्र पर साबुत चावलों की एक परत बना दें। चौकी पर माता लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा को स्थापित करें।यदि घर में मां लक्ष्मी गणेश का चांदी का सिक्का और श्री यंत्र है तो उन्हें भी इसी स्थान पर स्थापित करें। चार दिवसीय महापर्व का आगमन शनिवार से हो रहा है। इस बार सूर्यग...

धनतेरस पर धनिया और झाड़ू की खरदारी करना क्यों शुभ माना जाता है

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धनतेरस पर खरीदारी करने की परंपरा और मान्यता दोनों हैं। सदियों से ये रीत चली आ रही है की दिवाली का आरंभ धनतेरस की खरदारी से होता है। देवी लक्ष्मी की तरह ही भगवान धन्वंतरि भी सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। धनवंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था इसलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।  धनतेरस पर भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। धनतेरस पर भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।  धनतेरस पर पीतल या चांदी के बर्तन खरीदने की परंपरा है। अगर कुछ न हो तो धनतेरस पर गणेश लक्ष्मी की मूर्ति, झाड़ू और धनिए के बीज जरूर खरीदने चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि यह घर में सुख समृद्धि लाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, झाड़ू को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। धनतेरस पर झाड़ू खरीदने से घर में सुख-समृद्धि और धन में वृद्धि होती है। झाड़ू घर में पसरी दरिद्रता को दूर करती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ाती है। साफ-सफाई से धन की देवी लक्ष्मी आ...

भगवान विष्णु ने क्यों लिया वामन अवतार और क्या है धनतेरस रहस्य जानिए

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धनतेरस से जुड़ी एक और मान्यता के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इसकी वजह से कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन अवतार में भगवान विष्णु शुक्राचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमंडल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आये। बलि ने संकल्प लेकर तीन पग भूमि दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पैर से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि द...

एरावत हाथी की पूजा क्यों होती है। महालक्ष्मी व्रत क्यों रखा जाता हैं |

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ऐरावत हाथी वाली पूरी कहानी | महालक्ष्मी व्रत क्यों रखा जाता हैं | प्राचीन समय से ही यहाँ व्रत रखने का चलन हैं। लोग व्रत एवं उपवास रखकर ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाते हैं। किसी उद्देश्य को पाने के लिए दिनभर अन्न या जल नहीं लेना और भोजन का त्याग करना ही व्रत कहलाता हैं। भगवान की विशेष कृपा पाने के लिए व्रत रखा जाता हैं।  श्राद्ध पक्ष में आने वाली अष्टमी को लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है. इसे गजलक्ष्‍मी व्रत कहा जाता है। इस दिन सोना खरीदने का भी विशेष महत्व है।   कि इस दिन खरीदा सोना आठ गुना बढ़ता है। इस दिन हाथी पर सवार मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं। इस समय में शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं।इस पक्ष में आने वाली अष्‍टमी तिथि को शुभ माना जाता है। गजलक्ष्‍मी व्रत, महालक्ष्मी व्रत, हाथी पूजा की जाती है   आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी व्रत का पूजा की जाती  है। कुछ स्थानों पर इस दिन सिर्फ मिट्टी के हाथी की ही पूजा की जाती है। इसलिए इसे हाथी पूजन भी कहा जाता है। इस व्रत में हाथी को भी बेसन से बनी श्रृंगार सामग्री चढ़ाई जाती...

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