बाबा खाटू श्याम जन्मदिन : Baba Khatu Shyam Birthday

भगवान शिव और सती माता पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए महर्षि अगस्त्य के आश्रम में गए और उनके मुख से रामकथा सुन कर आत्म विभोर हो उठे। कुछ दिन वहां रहने के बाद भगवान शिव और सती माता वापस कैलाश की ओर चल पड़े।
कैलाश की ओर जाते हुए भगवान शिव विचार कर रहे थे कि किस प्रकार प्रभु श्री राम के दर्शन किए जाएं? तभी दंडकवन से गुजरते हुए उनकी दृष्टि श्री राम और लक्ष्मण पर पड़ी। रावण माता सीता का हरण कर ले गया था। श्री राम और लक्ष्मण सीता जी की खोज में भटक रहे थे। भगवान शिव उनके दर्शन कर भाव विभोर हो गए उचित समय न जानकर उन्होंने उन्हें अपने असली रूप से साक्षात्कार नहीं करवाया।माता सती के मन में श्री राम के प्रति संदेह उत्पन्न हुआ।उन्होंने सोचा अगर यह सच में भगवान श्री हरि विष्णु का ही रूप हैं तो अपनी पत्नि ती खोज में दर दर क्यों भटक रहे हैं

भगवान् शिव माता सती के अंतर्मन में क्या चल रहा है जान गए।उन्होंने माता सती से कहा,देवी ! यदि आपके मन में प्रभु श्री राम को लेकर कोई संदेह है तो आप उनकी परीक्षा ले सकती हैं।माता सती ने माता सीता का रूप धारण कर लिया और श्री राम के समीप चली गई। श्री राम ने उन्हें प्रणाम किया और बोले-माता ! आप वन में अकेले ? भगवान शिव कहां हैं। श्री राम के उनके वास्तविक स्वरूप को जान उन्हें बड़ी आत्मग्लानि हुई और वे वापस भगवान् शिव के पास चल पड़ीं।
वे जिधर भी रूख करती उधर ही उन्हें श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी एक साथ खड़े दिखाई देते और भगवान शिव, जगत पिता ब्रह्मा, इंद्र सप्तर्षियों आदि को श्री राम की चरण वंदना करते देखती।श्री राम की रची माया को देखकर वे डर गईं और सहम कर वहीं आंखे बंद करके बैठ गई।कुछ समय उपरांत उन्होंने डरते डरते आंखे खोली तो सारी माया का अंत हो चुका था। वह पुन भगवान शिव के पास पंहुची तो उन्होंने पूछा, ले आई श्री राम की परीक्षा। माता सती ने झूठ बोल दिया कि, उन्होंने कोई परीक्षा नहीं ली।भगवान् शिव ने ध्यान लगाकर सारी बात जान ली। उन्होंने भगवान् श्री राम की माया को प्रणाम किया जिससे प्रेरित होकर सती के मुख से झूठ निकल गया था।
सती ने सीता जी का वेश धारण किया, यह जानकर शिवजी के मन में विषाद उत्पन्न हो गया। उन्होंने सोचा कि यदि अब वे सती से प्रेम करते हैं तो यह धर्म विरुद्ध होगा क्योंकि सीता जी को वे माता के समान मानते थे परंतु वे सती से बहुत प्रेम करते थे, इसलिए उन्हें त्याग भी नहीं सकते थे। तब उन्होंने मन ही मन प्रतिज्ञा की कि अब पति-पत्नी के रूप में उनका और सती का मिलन नहीं हो सकता परन्तु इस बारे में उन्होंने सती से प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहा। तत्पश्चात वे कैलाश लौट आए।परीक्षा ली भी ताे क्या हुआ इसमें भगवान श्री राम जी का दर्शन ही ताे किया था ना परन्तु भगवान ने युग काे यह संदेश देने के लिए ही ताे फिर सती माता के जीवन की कथा में माेड़ दिया।
भगवान भाेले नाथ एवं सती माता ने अपने जीवन पर इस कथा काे घटाकर यही ताे संदेश दिया है कि नारी का प्रथम धर्म है- पति व्रत धर्म का पालन करना।अपने पतिदेव की अधीनता एवं आज्ञा में रहना। अपने प्रथम वर्ष अपने सहज धर्म का पालन करना। इसे छाेड़कर भगवान के भी दर्शन करने जाएं ताे वह भगवान काे स्वीकार नहीं।सती माता ने वह शरीर त्यागा तथा फिर पार्वती बनकर अपने प्रियतम भगवान भूतनाथ की सेवा के अलावा काेई कामना नहीं रखी ।
प्रमाण :-
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(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
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