बाबा खाटू श्याम जन्मदिन : Baba Khatu Shyam Birthday

शताब्दियों से हम मानते आए हैं कि श्रीराम ने अपनी गर्भवती पत्नी देवी सीता को किसी के कहने पर निर्वासित कर दिया था। सीता परित्याग की पूरी कहानी वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में मिलती है। वाल्मीकि रामायण ही रामायण का वास्तविक और मूर्त रूप है, क्योंकि ऋषि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और कई घटनाओं के स्वयं साक्षी भी थे।
जब भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास हुआ तो वे अकेले ही वनवास जाना चाहते थे। लेकिन माता सीता ने उनके साथ चलने का निर्णय लिया। ये माता सीता का स्वतंत्र निर्णय था। जंगल में माता सीता का रावण अपहरण कर लेता है। इसी मूल कारण को लेकर भगवान श्रीराम ने लंका की चढ़ाई की और रावण का वध किया। जब श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या वापस आए तो कुछ दिनों बाद श्रीराम के गुप्तचरों ने उनसे कहा कि प्रजा में माता सीता की पवित्रता पर संदेह किया जा रहा है। इसी संदेह के कारण माता सीता को अग्नि परीक्षा भी देनी पड़ी।
लेकिन इसके बाद ही माता सीता की पवित्रता पर सवाल उठाए जा रहे थे। तब प्रभु श्रीराम को पिता दशरथ के द्वारा सिखाया गया राजधर्म याद आ गया। जिसमें राजा दशरथ ने कहा था कि, एक राजा का अपना कुछ नहीं होता है। सब कुछ राज्य का हो जाता है। बल्कि आवश्यकता पड़ने पर यदि राजा को अपने राज्य और प्रजा के हित के लिए अपनी स्त्री, संतान, मित्र यहां तक की प्राण भी त्यागने पड़े तो उसमें संकोच नहीं करना चाहिए। क्योंकि राज्य ही उसका मित्र है और राज्य ही उसका परिवार है। प्रजा की भलाई ही उसका स्रवोपरि धर्म है।

क्योंकि राज्य ही उसका मित्र है और राज्य ही उसका परिवार है। प्रजा की भलाई ही उसका स्रवोपरि धर्म है। इस कारण भगवान श्रीराम ने अपने राजधर्म का पालन करते हुए माता सीता को छोड़ने का मन बना लिया। सीता जब गर्भवती थीं तब उन्होंने एक दिन प्रभु राम से तपोवन घूमने की इच्छा व्यक्त की। और उन्हें राज्य से बाहर जंगलों में भी रहना पड़ा।

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