धर्म डेस्क:- भगवान विष्णु का मानवीय शरीर में धरती पर पहला अवतार था। इस अवतार में भगवान विष्णु ने शरीर मानवीय लिया था, जबकि उनका मुख वराह के समान था। इसीलिए इस अवतार को वराह अवतार कहा गया। प्राचीन शास्त्रों में यह कहा गया है कि विष्णु जी ने यह अवतार दैत्य हिरण्याक्ष का वध करने के लिए लिया था।
जिस दिन वराह रूप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया वह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। जिसे वराह जयंती के पर्व के रूप में मनाया जाता है। वराह भगवान विष्णु के तीसरे अवतार थे। श्रीमद्भगवतगीता का श्लोक है - यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम अर्थात जब जब धर्म की हानि होती है, अधर्म का बोलबाला बढ़ेगा तब तब मैं स्वयं जन्म लुगा । कृष्ण जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे पर उनके द्वारा कही गई ये बात भगवान विष्णु के लिए हर अवतार को सिद्ध करती है।
भगवान विष्णु के इस स्वरूप को उद्धारक देवता के रूप में जाना जाता है। वराह अवतार में भगवान विष्णु आधे सुअर एवं आधे इंसान के रूप में अवतरित हुए थे। वराह भगवान का व्रत कल्याणकारी है जो भक्त वराह भगवान के नाम से व्रत रखते हैं उनका सोया भाग्य जाग उठता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि भगवान वराह की पूजा करने से धन, स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है। इस अवतार ने बुराई पर विजय प्राप्त की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था। ये पूजा भक्त अपने जीवन से सारी बुराइयों को समाप्त करने के लिए करते हैं।
जीवन मंत्र डेस्क. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध किया था। वराह जयन्ती के अवसर पर भक्त लोग भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन, उपवास एवं व्रत इत्यादि का पालन करते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इसके पश्चात भगवान वराह अंतर्धान हो गए।
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