धर्म डेस्क। हिंदू मान्यताओं के अनुसार कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान श्री गणेश जी पूजा की जानी जरूरी है। बुधवार के दिन भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। भगवान गणेश भक्तों पर प्रसन्न होकर उनके दुखों को हरते हैं भगवान गणेश खुद रिद्धि-सिद्धि के दाता और शुभ-लाभ के प्रदाता हैं। वह भक्तों की बाधा, सकंट, रोग-दोष और दरिद्रता को दूर करते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री गणेश जी की विशेष पूजा का दिन बुधवार है। लेकिन प्रथम पूज्य गणपति भगवान को तुलसी अर्पित करना या उनके भोग में शामिल करना वर्जित माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गणपति जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। वहाँ गंगा तट पर धर्मात्मज कन्या तुलसी भी अपने विवाह के लिए तीर्थयात्रा कर रही थी। गणेश जी सिंहासन पर बैठे हुए थे और चंदन का लेपन के साथ उनके शरीर पर अनेक रत्न जड़ित हार और गले में उनके स्वर्ण-मणि रत्न पड़े हुए थे और कमर पर रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था। उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी। तपस्या में विलीन गणेश जी को देख तुलसी का मन उनके प्रति आकर्षित हो गया। उन्होंने तपस्या भंग के दी और गणपति जी को तपस्या से उठा कर उन्हें विवाह प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणपति जी बेहद क्रोध में आ गए। गणेश जी ने तुलसी देवी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
भगवान गणेश ने स्वयं को ब्रह्मचारी बताते हुए तुलसी का विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया। तुलसी को भगवान गणेश के इस रुखे व्यवहार और अपना विवाह प्रस्ताव ठुकराए जाने से बहुत दुख हुआ और उन्होंने आवेश में आकर भगवान गणेश को दो विवाह होने का शाप दे दिया। इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को असुर से विवाह होने का शाप दे डाला।
वहीं गणेश जी ने भी क्रोध में आकर तुलसी देवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये श्राप सुनते ही तुलसी जी गणेश भगवान से क्षमा मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके पश्चात तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। गणेश भगवान वरदान रूप कहा तुलसी कलयुग में जीवन और मोक्ष देने वाली होगी, लेकिन मेरी पूजा में तुम्हारा प्रयोग नहीं होगा। इसी के चलते गणेश भगवान के पूजन में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं होता है।
तुलसी के पौधे को घर के अंदर नहीं लगाना चाहिये. इसके पीछे भी एक रहस्य है, जिसके अनुसार तुलसी जी के पति के मृत्यु के बाद भगवान श्री हरि विष्णु ने तुलसी जी को अपनी प्रिय सखी राधा की समरूप माना था. तुलसी ने उनसे कहा कि वे उनके घर जाना चाहती हैं, लेकिन श्री हरि ने मना दिया और कहा, मेरा घर लक्ष्मी के लिए है, लेकिन मेरा दिल तुम्हारे लिए है. श्री हरि की इस बात पर तुलसी जी ने कहा कि घर के अंदर ना सही बाहर तो उन्हें स्थान मिल ही सकता है, जिसे विष्णु भगवान ने मान लिया. कहा जाता है कि तब से ही तुलसी जी का पौधा घर और मंदिरों के बाहर लगाया जाता है.
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