धर्म डेस्क:- ये बात उस समय कि है जब महाभारत का युद्घ आरंभ होने वाला था। भगवान श्री कृष्ण युद्घ में पाण्डवों के साथ थे जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था। गौराबाबा धाम में चल रही श्रीकृष्णरास लीला महोत्सव के चौथे दिन पाण्डओं और कौरवो के बीच हुये महाभारत युद्ध में कौन जीता कौन हारा किसने किसको मारा इस बात का गवाह व निर्णायक घटोत्कच्य पुत्र महाबर्बरीक ने भगवान कृष्ण के समक्ष्य पाण्डओं की उपस्थिति में स्थिति को स्पष्ट किया।
वृन्दावन की रास मंडलीय चौथे दिन मंचन किये गये रास लीला में पाण्डव और कौरव के बीच युद्ध दिखाया गया। जिसमें भीम पुत्र घटोत्कच्य के महाबली पुत्र बर्बरीक ने घोर तपस्या कर मांकाख्या देवी द्वारा प्रसन्न हो कर दिये गये अस्त्र-शस्त्र व वरदान से इतना पराक्रमी हो गया कि उसे सम्र्पूण संसार में कोई हराने वाला नही था। इतना ही नही उसने मां को दिये गये वचन मे कि कमजोर के पक्ष में युद्ध करने करूगा। इस बात से पाण्डवो तो चितिंत हुये ही। बासुदेव आर्श्चय चकित हो गये। श्रीकृष्ण ने बपनी माया फैला दान में बर्बरीक का सर मांग एक वृक्ष में महाभारत के युद्ध के गवाह के लिये स्थापित कर दिया। और पाण्डओ को विजय श्री दिला दी। पाण्डवो को युद्ध की जीत पर अंहकार न हो इस बात को लेकर श्रीकृष्ण उन्हे लेकर बर्बरीक के पास पहुंचे युद्ध में कौन जीत किसने किसको मारा इस बात की प्रमाणिकता बर्बरीक के मुॅह से निर्णय सुनाया गया।

श्री कृष्ण ने बर्बरीक का मजाक उड़ाया कि, वह तीन वाण से भला क्या युद्घ लड़ेगा। कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण है। वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है। सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा। इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं अपने बाण से उसके सभी पत्तों को छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि तुम एक बाण से युद्घ का परिणाम बदल सकते हो। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके, भगवान का स्मरण किया और बाण चला दिया। पेड़ पर लगे पत्तों के अलावा नीचे गिरे पत्तों में भी छेद हो गया।
इसके बाद बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा क्योंकि एक पत्ता भगवान ने अपने पैरों के नीचे दबाकर रखा था। भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि युद्घ में विजय पाण्डवों की होगी और माता को दिये वचन के अनुसार बर्बरीक कौरावों की ओर से लड़ेगा जिससे अधर्म की जीत हो जाएगी। इसलिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की। बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया। बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है। बर्बरीक ने ब्राह्मण से कहा कि आप अपना वास्तविक परिचय दीजिए। इस पर श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वह कृष्ण हैं।

सच जानने के बाद भी बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह उनके विराट रूप को देखना चाहता है तथा महाभारत युद्घ को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है। भगवान ने बर्बरीक की इच्छा पूरी कि, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया। यहां से बर्बरीक के सिर ने पूरा युद्घ देखा। युद्घ समाप्त होने के बाद जब पाण्डवों में यह विवाद होने लगा कि किसका योगदान अधिक है तब श्री कृष्ण ने कहा कि इसका निर्णय बर्बरीक करेगा जिसने पूरा युद्घ देखा है। बर्बरीक ने कहा कि इस युद्घ में सबसे बड़ी भूमिका श्री कृष्ण की है। पूरे युद्घ भूमि में मैंने सुदर्शन चक्र को घूमते देखा। श्री कृष्ण ही युद्घ कर रहे थे और श्री कृष्ण ही सेना का संहार कर रहे थे।
प्रमाण :-
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(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
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