धर्म डेस्क:-महा शूरवीर पांडव जब अज्ञातवास में थे। तो एक दिन भीम जंगल में जा रहे थे। तभी हिडिंबा नाम की एक राक्षसी, उन पर मोहित हो गई। भीम ने उसके भाई हिडिंब के साथ युद्ध किया। जो बेहद शक्तिशाली था। हिडिंब को परास्त करके,भीम ने हिडिंबा से विवाह किया। उन दोनों के मिलन से, घटोत्कच नाम का एक पुत्र प्राप्त हुआ। घटोत्कच अपने पिता से भी ज्यादा शूरवीर योद्धा था।
एक दिन घटोत्कच अपने पिता और अपने परिजनों के दर्शन के लिए आए। तब श्री कृष्ण ने पांडवों से, घटोत्कच का शीघ्र विवाह कराने को कहा। तब पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण से अनुरोध किया। कि आप ही घटोत्कच के लिए, किसी योग्य वधू का चयन करें। इस पर श्री कृष्ण ने, असुरों के शिल्पी, मूर दैत्य की परम बुद्धिमान और वीर कन्या कामकंटका, जिसे मोरबी नाम से भी जानी जाती है। उसे घटोत्कच के लिए, सबसे योग्य वधु चुना।
लेकिन मोरबी ने अपने विवाह के लिए, एक शर्त रखी थी। कि जो भी उसे शस्त्रऔर शास्त्रार्थ में पराजित करेगा। उसी से विवाह करेगी। तब श्री कृष्ण स्वयं घटोत्कच को दीक्षित करके, उसका वरण करने के लिए भेजा। घटोत्कच ने मोरबी को शस्त्र और शास्त्रार्थ दोनों में पराजित कर विवाह किया। घटोत्कच अपनी पत्नी मोरबी को लेकर हिडिंब वन आ गए। यहीं पर मोरबी ने एक अद्भुत बालक को जन्म दिया। जिसके बाल बब्बर शेर जैसे घुंघराले थे। इसीलिए घटोत्कच ने उनका नाम बर्बरीक रखा। कलयुग के अवतार बाबा श्याम, जिन्हें मोरवी नंदन भी कहा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, इनका जन्म स्थान हिडिंब वन है।
बर्बरीक बचपन में ही अत्यंत ही चमत्कारिक थे। वे जन्म लेते ही, पूर्ण रुप से विकसित हो गए। जब उस बालक को लेकर, घटोत्कच श्री कृष्ण के पास गए। तब बालक बर्बरीक ने श्री कृष्ण से पूछा। हे प्रभु, इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग क्या है। श्री कृष्ण ने उनके ऐसे विचारों से, प्रभावित होकर कहा। हे पुत्र! इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग परोपकारी एवं निर्बलों का साथी बनकर, सदैव धर्म का साथ देने में है। इसके लिए तुम्हें शक्तियां अर्जित करनी पड़ेगी। इसलिए तुम महिसागर गुप्त क्षेत्र में जाकर, देवी सिद्ध अंबिका व नौ दुर्गा की आराधना करो। उनसे शक्तियों को प्राप्त करो।

बर्बरीक भगवान के आदेश का पालन करते हुए। महिसागर में सिद्ध अंबिका की आराधना करने लगे। प्रसन्न होकर बर्बरीक को सिद्ध अंबिका ने तीन बाण और कई अद्भुत शक्तियां प्रदान की। इन तीन दिव्य बाणों से, तीनो लोकों पर विजय प्राप्त की जा सकती थी। देवी ने उन्हें चन्डिल नाम से अलंकृत किया।वीर बर्बरीक ने ब्रहमचारी होने का प्रण लिया था। उन्होंने पृथ्वी और पाताल के बीच रहने वाली, नाग कन्याओं के विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि वह आजीवन ब्रहमचारी रहने का प्रण कर चुके हैं। उन्होंने सदैव निर्बल की, असहाय लोगों की व हारे हुए लोगों की सहायता करने का व्रत लिया है। इसीलिए बाबा को ‘हारे का सारा’ कहा जाता है।
प्रमाण :-
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(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
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