माथे पर तिलक लगाने से व्यक्ति में तेज की वृद्धि होती है और वो स्वयं को ऊर्जावान महसूस करता है। धार्मिक रूप से हम सब रोली, हल्दी, चंदन, भस्म, कुमकुम आदि का तिलक लगाते हैं। पूजा में प्रयोग किया जाने वाला तिलक सिर, मस्तक, गले, हृदय, दोनों बाजू, नाभि, पीठ, दोनों बगल आदि मिलाकर शरीर के कुल 12 स्थानों पर लगाया जाता है। यदि सिर्फ माथे पर तिलक लगाना हो तो उसे ललाट बिंदु यानि दोनों भौहों के बीच में ही लगाना चाहिए।
माथे पर चंदन, कुमकुम, केसर आदि का तिलक लगाया जाता है। कई लोग हमेशा माथे पर तिलक लगाएं रखते हैं। हिंदू धर्म में हर दिन हर देवी देवताओं को समर्पित है और तिलक लगाने का तरीका भी हर दिन अलग-अलग है। किसी दिन चंदन का तिलक लगाया जाता है। सोमवार को शिव जी का दिन माना जाता है। इस दिन के स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं इसलिए इस दिन सफेद चंदन, विभूति या फिर भस्म का तिलक लगाना चाहिए।
हमेशा अनामिका उंगली से तिलक लगाना चाहिए। इससे मानसिक शक्ति प्रबल बनती है। हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार बीच वाली उंगली में शनि ग्रह होता है और शनि ग्रह सफलता का प्रतीक माना जाता है इसलिए इस उंगली से तिलक करने पर व्यक्ति को कार्य में सफलता मिलती है।
१ तिलक हमेशा ईश्वर के नाम से लगाया जाता है इसलिए तिलक लगाने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। तिलक हमेशा उत्तर दिशा की ओर मुख करके लगाना चाहिए।
प्रातः और संध्या हवन करने वालों को तिलक लगाकर ही हवन करना चाहिए। बिना तिलक के फल प्राप्त नहीं होता है। श्वेत चंदन, लाल चंदन, कुमकुम, हल्दी, भस्म, आदि का तिलक करना शुभ है। भस्म से त्रिपुंड नहीं लगाना चाहिए।
७ तिलक हमेशा ललाट बिंदु यानि बिलकुल भौहों के मध्य भाग में ही लगाना चाहिए। भगवान को तिलक हमेशा अनामिका उंगली से लगाया जाता है। इस उंगली से तिलक लगाने से शांति मिलती है। मध्यमा से तिलक लगाने से आयु वृद्धि होती है।
अंगूठे से तिलक करना पुष्टिदायक है।
भगवान को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि हमारा जीवन आपकी कृपा से सुगंध से भर जाए तथा हमारा व्यवहार शीतल रहे यानी हम ठंडे दिमाग से काम करे। अक्सर उत्तेजना में काम बिगड़ता है। चंदन लगाने से उत्तेजना काबू में आती है। विष्णु संहिता में इस बात का उल्लेख है कि किस प्रकार के कार्य में किस अंगुली से तिलक लगाना उचित होता है। किसी भी तरह के शुभ और वैदिक कार्य में अनामिका अंगुली, पितृ कार्य में मध्यमा, ऋषि कार्य में कनिष्ठिका तथा तांत्रिक क्रियाओं में प्रथम यानि तर्जनी अंगुली का प्रयोग किया जाना चाहिए। तिलक लगाने के लिए भिन्न-भिन्न अंगुलियां का प्रयोग अलग-अलग फल प्रदान करता है। अगर तिलक अनामिका अंगुली से लगाया जाता है तो इससे शांति मिलती है।मध्यमा अंगुली से तिलक करने पर आयु में बढ़ोत्तरी होती है, इसके अलावा अंगूठे से तिलक करना पुष्टिदायक माना गया है।
धार्मिक कर्मकांड, मांगलिक कार्यों और पूजा में तिलक लगाया जाता है। किसी भी पूजा-पाठ, यज्ञ अनुष्ठान आदि का शुभारंभ श्री गणेश से होता है। उसी प्रकार सबसे पहले बिना तिलक धारण किए हुए कोई भी पूजा और मांगलिक कार्य आरंभ नहीं होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। इसलिए चंदन, कुमकुम, रोली, सिंदूर और भस्म का तिलक लगाकर उसको शुद्ध किया जाता है। मस्तक पर तिलक लगाना मंगलमयी और शुभकारी होता है। तिलक सात्विकता का सौंदर्य और प्रतीक है।
प्रमाण :-
इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’
(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
Comments
Post a Comment