धर्म डेस्क:- भैरव की उत्पत्ति पुराणों में उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के पाँचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है।ऐसे में कहा जाता है कि मां ने नवरात्र के वक्त ही राक्षस का संहार कर अपने भक्तों के कष्ट खत्म किए थें और वैष्णों मंदिर की यह मान्यता भी है कि जब तक मां की इच्छा नहीं होती है। तब तक भक्त वहां नहीं पहुंच पाते है और मां जिनको बुलाती हैं वो हर दुख के होते हुए भी वहां आसानी से जाते हैं। अब आज हम आपको बताते हैं कैसे बना वैष्णों मंदिर और क्यों होती है कन्या पूजन।

हंसाली नाम का एक गांव था जो कटरा के पास था। वहां मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनकी कोई संतान ना होंने के कारण वो बेहद दूखी रहते थे। उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया। मां श्रीधर की भक्ति को जानती थीं इसलिए कन्याओं के बीच कन्या बनकर ही बैठ गईं। इसी के बाद से ऐसा माना जाता है कि जो भी अपने घर में कन्या पूजन करवाता है मां आशीर्वाद देने उन्हीं कन्याओं में आकर बैठती हैं। इसके बाद जब सभी चले गए तो मां वैष्णों ने जो कन्या रुप में थीं उन्होंन श्रीधर से कहा कि वो पूरे गांव को भंडारे के लिए निमंत्रित करें। श्रीधर ने गुरुगोरखनाथ और उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को निंमत्रण दे दिया। श्रीधर ने निमंत्रण तो दे दिया, लेकिन उन्हें चिंता होने लगी की वो पूरे गांव को भोज कैसे कराएंगे क्योंकि ना तो उनके पास धन है ना ही इतना भोजन।

भैरव का संहार- जब लोग खाने बठे तो कन्या का रुप धरकर आई मां ने सबको भोजन परोसनाशुरु किया। उस पात्र से भोजन खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। जब कन्या भैरवनाथ के पास गई तो उसने हठ किया कि मुझे खीर-पूड़ी नहीं चाहिए मुझे तो मांस मदिरा चाहिए। मां ने उसे समझाया कि ये ब्राह्मण का घर है और यहां ये सब नहीं मिलेगा। वो मां से क्रोधित होने लगा और जिद करने लगा। मां समझ गई कि भैरव उनसे कपट कर रहा है। मां आगे जाने लगी तो भैरव उनका पीछा करने लगा। भैरव चाहता था कि मां के हाथों उसे मोक्ष मिले। मां ने त्रिकुट पर्वत पर एकत गुफा में प्रवेश कर नौ माह तपस्या की जब भैरव वहां पहुंचा तो वो दूसरे मार्ग से बाहर निकल गई। इसी जगह को गर्भगृह कहते हैं। गुफा से बाहर निकलकर कन्या से उन्होंने देवी का रुप धारण कर लिया और भैरव को गुफा से जाने की चेतावनी दी। माता की रक्षा के लिए हनुमान जी वहीं स्थित थी और उन्होंने भैरव से युद्ध किया, लेकिन भैरव तो सिर्फ मां के हाथों से मोक्ष पाना चाहता था इसलिए हनुमान जी उसे हरा नहीं पाए तब मां ने महाकाली का रुप धारण करके भैरव का संहार किया।

बाणगंगा- हनुमान जी को प्यास लगने पर मां ने अपने बाण से पर्वत पर बाणगंगा नदी बनाई और इसमें अपने केश धुले थे। इसमें नहाने से या इसका जल पीने से श्रद्धालुओं की सारी परेशानियांदूर हो जाती हैं। कहते हैं कि जिस जिस रास्ते से मां भैरव बाबा को पीछा करवा रहीं थी। वहीं वैष्णों देवी का रास्ता बन गया। मरते वक्त भैरो ने मां स क्षमा मांगी, मां ने उसे माफ कर दिया और वरदान देते हुए कहा कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन के लिए आएगा और तेरे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी। जहां मां ने भैरों का वध किया था उसका सिर कट कर 8 किमी दूर पर्वत पर गिरा। आज भी भक्त जब मां के दर्शन के लिए जाते हैं तो भैरोबाबा के दर्शन जरुर करते हैं। ये रास्ता एक दम खड़ी चढ़ाई है, लेकिन मां और भैरोबाबा की कृपा से भक्तों को चलने में कठिनाई नहीं होती है।
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