धर्म डेस्क:-महाभारत में कई बड़े पात्र है, जिन्होंने इसमें अपना काफी योगदान दिया। पितामह भीष्म से लेकर द्रोपदी तक की भूमिका महाभारत में बहुत अहम थी। महाभारत का ऐसा ही एक प्रमुख किरदार द्रोपदी का था, जो पांचों पांडवों की पत्नी होने के साथ स्वाभिमानी महिला और एक धर्मपरायण नारी थी। उसके चरित्र पर जब सवाल उठाए गए और उसको अपमानित किया गया तो वह प्रतिशोध की ज्वाला में जल उठी और उसने जो बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी वह महाभारत का युद्ध था द्रोपदी ने भी अपने जीवनकाल में कुछ गलतियां की जो बहुत भार पड़ी। खैर, आज हम आपको द्रौपदी के उन पांच गलतियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी वजह से पूरे भारत वर्ष का इतिहास ही बदल गया और ये गलतियां महाभारत युद्ध का कारण बनीं।
द्रोपदी दानवीर कर्ण को चाहती थी, लेकिन सुतपुत्र होने की वजह से उसने कर्ण के लिए अपनी भावनाओं को बदल दिया। द्रोपदी ने कर्ण को स्वयंवर में हिस्सा नहीं लेने दिया और साथ ही अपमानित भी किया। द्रोपदी के द्वारा किए गए अपमान को कर्ण कभी भुला नहीं पाया और आजीवन दुर्योधन की दोस्ती से बंधा रहा। युद्ध में सब कुछ जानते हुए भी कर्ण ने दुर्योधन का साथ देते हुए वीरगति पाई। द्रौपदी स्वयंवर में अकेले अर्जुन ने द्रौपदी को जीता था, मगर द्रौपदी पांचो पांडवों की पत्नी बनीं। अगर वो ये शर्त स्वीकार नहीं करती तो शायद इतिहास कुछ और ही होता। द्रौपदी ने कुंती और ऋषि व्यास के कहने पर ही पांचो पांडवों से विवाह करना स्वीकार किया था। लिहाजा अगर द्रौपदी पांचो पांडवों की पत्नी न होती तो उसे अपमान का सामना करना नहीं पड़ता और महाभारत का युद्ध न होता।

चीर हरण की कथा जब धर्मराज युधिष्ठिर कौरवों से जुआ में अपना सबकुछ हार गए और द्रोपदी को भी दांव पर लगाकर हार गए तब दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन को द्रोपदी को बीच सभा भवन में लाकर उसके वस्त्र उतारने का आदेश दिया। दुशासन जब पांचाली का चीर खींचने लगा तो उसने सभा भवन में उपस्थित सभी लोगों से मदद मांगी, लेकिन किसी भी व्यक्ति ने द्रोपदी की कोई मदद नहीं की। अंत में द्रोपदी ने अपने आप को असहाय जानकर उसने भगवान श्रीकृष्ण को याद किया और उनसे अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की और उनसे पूछा कि, हे! भक्तवत्सल आप तो कहते हो कि मानव को अपने पाप और पुण्य कर्मों का ही फल उसका मान और अपमान कराता है। तो हे करूणानिधान मैंने कौन सा ऐसा पाप कर्म किया है, जिसके कारण आज अनेक महारथियों से भरी राज्यसभा में सबके सामने मेरा चीरहरण हो रहा है। तब भगवान ने द्रोपदी को उसके पूर्व जन्म का स्मरण कराया।
अपने पूर्व जन्म में द्रोपदी एक राजकुमारी थी।

एक दिन जब द्रोपदी अपनी सखियों के संग गंगास्नान के लिए जा रही थी तो उसने देखा कि गंगा में एक संत स्नान कर रहे थे और उनके अंग वस्त्र गंगा के किनारे रखे हुए थे। यह देखकर द्रोपदी को शरारत करने का विचार उसके मन में आया और उसने अपनी सखियों के साथ मिलकर उस संत के अंग वस्त्र एक स्थान पर छिपा दिए और चुपचाप किसी दूसरे घाट पर स्नान करने के लिए चली गई। स्नान करने के पश्चात अपनी सखियों के साथ हंसते हुए और आमोद-प्रमोद करते हुए द्रोपदी अपने महल को चली गई। इधर जब संत गंगास्नान करने के उपरांत जल से बाहर आए तो अपने वस्त्र गंगातट पर ना पाकर परेशान हो गए और इधर-उधर खोजने लगे। बहुत खोजबीन के पश्चात संत को अपने अंगवस्त्र एक जगह छिपे हुए मिल गए। तब उस संत ने क्रोधित होकर श्राप दिया कि आज जिसने भी मेरे साथ ऐसा घृणित परिहास किया है और मेरे वस्त्र हरण किए हैं, एक दिन उसे भी अपने वस्त्र हरण होने पर समाज के सामने लज्जित होना पड़ेगा। इसी श्राप के कारण द्रोपदी को यह अपमान झेलना पड़ा। परन्तु भगवान श्रीकृष्ण की भक्त होने के कारण भगवान ने उसकी पुकार सुनी और उसके चीर को बढ़ाकर उसके सम्मान की रक्षा की।

जिस वक्त सभी पांडव द्रौपदी के साथ वन की ओर जाने के लिए घृतराष्ट्र से आज्ञा लेने आए थे उस समय युधिष्ठिर ने अपनी आंखें मूंद ली थी। विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा कि इस समय युधिष्ठिर इतने क्रोध में हैं कि उनकी दृष्टि किसी पर पड़ जाए तो वह भस्म हो जाएगा। इसलिए ज्येष्ठ पांडु पुत्र ने आंखें बंद कर ली है। विदुर ने धृतराष्ट्र को बताया कि भीम भी इस वक्त बड़े क्रोध में हैं। इन्होंने अपनी शक्तिशाली भुजाओं को इस तरह फैला रखा है जैसे यह संकेत दे रहे हैं कि मैं कौरवों का विनाश कर दूंगा। द्रौपदी के अपमान के बाद से ही अर्जुन क्रोध में थे। वन जाते समय यह बड़े वेग से पैरों की चोट से धूल उड़ रहे थे। विदुर ने बताया कि अर्जुन धूल उड़ाते हुए चल रहे हैं जो इस बात का संकेत दे रहे हैं कि युद्ध में अपने वाणों से सबको घूल में मिला दूंगा। पांडवों में सबसे सुंदर नकुल और सबसे छोटे सहदेव ने अपने शरीर पर धूल मल लिया था ताकि उन्हें कोई पहचान ना सके। यह इस बात का संकेत था कि महाभारत के युद्ध में सभी को ऐसे धूल में मिलाकर रख देंगे कि कोई पहचान नहीं सकेगा।
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