धर्म डेस्क:- कर्ण महादानी इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि जब दान की बात आती है तो वह यह नहीं देखते कि मांगने वाला शत्रु है या मित्र। इसका उल्लेख महाभारत में कुछ इस प्रकार मिलता है कि जब युद्ध से पहले इंद्र ने कर्ण से उनका कवच मांगा। तो कर्ण भी जानते थे कि कवच मांगने वाले स्वयं भगवान इंद्र हैं।
वसुषेण के बड़े होने के उपरांत उन्होंने शास्त्रों का अध्ययन कराना शुरू कर दिया। कर्ण सूर्य का बहुत बड़ा उपासक था। वह सुबह से शाम तक उपासना में ही विलीन रहता था। उपासना के समय अगर कोई उनसे कुछ मांगता तो वे कभी उसे निराश नहीं करते थे। उनके जैसा दानवीर पांडवों और कौरवों में कोई नहीं था। इसी खूबी के कारण उन्हें दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता था। वे कभी किसी याचक को खाली हाथ नहीं जाने देते थे और यही उनकी मृत्यु का कारण भी बना।

कर्ण की दानवीरता की बात सुनकर अर्जुन तर्क देकर उसकी उपेक्षा करने लगा। श्रीकृष्ण अर्जुन की मनोदशा समझ गये। वे शांत स्वर में बोले पार्थ कर्ण रण क्षेत्र में घायल पड़ा है, तुम चाहो तो उसकी दानवीरता की परीक्षा ले सकते हो। अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बात मान ली। दोनों ब्राह्मण के रूप में उसके पास पहुचे। घायल होने के बाद भी कर्ण ने ब्राह्मणों को प्रणाम किया और वहां आने का उद्देश्य पूछा। श्रीकृष्ण बोले राजन आपकी जय हो, हम यहाँ भिक्षा लेने आए है, कृपया हमारी इच्छा पूर्ण करे। कर्ण थोड़ा लज्जित होकर बोला ब्राह्मण देव। मै रणक्षेत्र में घायल पड़ा हुआ हू, मेरे सारे सैनिक मारे जा चुके है मृत्यु मेरी प्रतीक्षा कर रही है इस अवस्था में भला मै आपकों क्या दे सकता हूँ।

राजन इसका अर्थ हुआ कि हम खाली हाथ ही लौट जाए? किन्तु इससे आपकी कीर्ति धूमिल हो जाएगी। संसार आपकों धर्म विहीन राजा के रूप में याद रखेगा, यह कहते हुए वे लौटने लगे। तभी कर्ण बोला- ठहरिये ब्राह्मण देव, मुझे यश कीर्ति की इच्छा नही है, लेकिन मै अपने धर्म से विमुख होकर मरना नही चाहता, इसलिए मै आपकी इच्छा अवश्य पूर्ण करुगा। कर्ण के दो दांत सोने के थे, उन्होंने निकट पड़े पत्थर से उन्हें तोडा और बोले ब्राह्मण देव मैंने सर्वदा सोने का ही दान किया है. इसलिए आप इन स्वर्ण युक्त दांतों को स्वीकार करे। श्रीकृष्ण दान अस्वीकार करते हुए बोले- राजन इन दांतों पर रक्त लगा है और आपने इसे अपने मुह से निकाला है, इसलिए यह स्वर्ण झूठा है। हम स्वीकार नही करेगे। तभी कर्ण अपना बाण चलाया और गंगा धोकर दान दिया। इस दानवीरता से प्रसन्ना होकर भगवान कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गए और कर्ण को वरदान मांगने को कहा।
श्री कृष्ण कर्ण वरदान मांग ने कहा तब कर्ण ने वरदान रूप में अपने साथ हुए अन्याय को याद करते हुए भगवान कृष्ण के अगले जन्म में उसके वर्ग के लोगो के कल्याण करने को कहा। दूसरे वरदान रूप में भगवान कृष्ण का जन्म अपने राज्य लेने को माँगा और तीसरे वरदान के रूप में अपना अंतिम संस्कार ऐसा कोई करे जो पाप मुक्त हो। इसीलिए भगवान ने उनका अंतिम संस्कार अपने हाथों पर किया था।
प्रमाण :-
‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’
(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
Comments
Post a Comment