धर्म डेस्क:- मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वालामुखी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर जोता वाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं। इस मदिर का चमत्कार यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालों की पूजा की जाती है। आजतक इसका कोई रहस्य नहीं जान पाया है कि आखिर यह ज्वाला यहां से कैसे निकल रही है। कई भू-वैज्ञानिक ने कई किमी की खुदाई करने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक गैस कहां से निकल रही है। साथ ही आजतक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है। आ
मंदिर के द्वार के सामने चांदी के आले में जो मुख्य ज्योति सुशोभित है उसको महाकाली कहा जाता है महाकाली ज्योति के निचे भंडार भरने वाली,अन्न धन से सदैव परिपूर्ण करने वाली माता अन्नपूर्णा की पवित्र की ज्योति है | तीसरी ज्योति चण्डीमाता की है चौथी पवित्र ज्योति हिंगलाज भवानी की है |पांचवी ज्योति महालक्ष्मी की है |छटवी ज्योति विंध्यबासिनि एवं सातवीं ज्योति माँ सरस्वती की है |
ज्वाला देवी की ज्वाला से संबंधित एक पौराणिक कथा भी है। कथा के अनुसार, भक्त गोरखनाथ मां ज्वाला देवी के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा भक्ति में लीन रहते थे। एकबार भूख लगने पर गोरखनाथ ने मां से कहा कि मां आप पानी गर्म करके रखें तब तक मैं मीक्षा मांगकर आता हूं। जब गोरखनाथ मिक्षा लेने गए तो वापस लौटकर नहीं आया। मान्यता है कि यह वही ज्वाला है जो मां ने जलाई थी और कुछ ही दूरी पर बने कुंड के पानी से भाप निकलती प्रतित होती है। इस कुंड को गोरखनाथ की डिब्बी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कलयुग के अंत में गोरखनाथ मंदिर वापस लौटकर आएंगे और तब तक ज्वाला जलती रहेगी।
बादशाह अकबर ने मंदिर की ज्वाला के बारे में सुना तो उसने अपनी सेना बुलाकर इस ज्वाला को बुझाने के लिए कई बार कोशिश की लेकिन कोई भी मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाया। फिर उसने नहर तक की खुदाई करवाने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहा। नहर मंदिर की बायीं ओर देखने को मिल जाएगी। बाद में वह मां के इस चमत्कार को देखकर नतमस्तक हो गया और सवा मन के सोने का छत्र चढ़ाने पहुंचा लेकिन माता ने उसे स्वीकार नहीं किया और वह गिरकर किसी अन्य धातु में बदल गया। यह धातु कौन सा है इसका आजतक किसी को पता नहीं चला।
किंवदंती है की सतयुग में सम्राट भूमिचंद को जब अनुमान हुआ की भगवती की जीवा भगवन विष्णु के धनुष से काटकर हिमालय के धौलीधार पर्वतो पर गिरी है। तब उनो ने नगरकोट काँगड़ा में एक छोटा सा मंदिर भगवती सती के नाम से बनवा दिया। श्री ज्वाला देवी पर गोरख डिब्बी नमक पवित्र स्थान है यहाँ एक सहोता से कुंड में जल निरन्तर खोलता रहता है। और देखने में गर्म परतीत होता है। परन्तु वास्तव में जल ठंडा है कहा जाता है की जहाँ पर गोरख नाथ जी ने तपस्या की थी। बाद में बादशाह अकबर ,महाराजा रंजीत जी जैसे लोक जहां आये थे।
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(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
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