धर्म डेस्क:-महाभारत का युद्ध अपनों के बीच हुआ था और यही कारण है कि अर्जुन कई बार इस युद्ध के दौरान मोह में फंसते रहे थे और यही कारण था कि भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया था। गीता से मिले ज्ञान के आधार पर ही अर्जुन ने अपने कर्म पर ध्यान दिया और युद्ध में अपने गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और अपने सगों से भिड़ गए थे। महाभारत युद्ध होने का मुख्य कारण कौरवों की उच्च महत्वाकांक्षाएँ और धृतराष्ट्र का पुत्र मोह था। कौरव और पाण्डव आपस में चचेरे भाई थे। वेदव्यास जी से नियोग के द्वारा विचित्रवीर्य की भार्या अम्बिका के गर्भ से धृतराष्ट्र और अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु उत्पन्न हुए। महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म के बीच हुआ। जहां धर्म का साथ देने चक्रधारी भगवान कृष्ण पाण्डवों के साथ थे वहीं दूसरी तरफ भीष्म पितामह जैसे महान व्यक्तित्व नमक का कर्ज अदा करने के लिए अधर्मी कौरवों के साथ थे।

द्रौपदी वस्त्रहरण के बाद द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि अगर दुर्योधन और उनके भाईयों से तुम बदला नहीं ले सकते हो तो तुम पांचो को धिक्कार है। द्रौपदी ने भीम से कहा कि जब तक तुम मेरे केश के लिए दुशासन के छाती का खून नहीं लाओगे, तब तक ये केश खुले रहेंगे। इसके बाद भीम ने कसम खाई कि मैं दुर्योधन की जांघ को गदा से तोड़ूंगा और दुशासन की छाती का रक्तपान करूंगा। वहीं कर्ण ने द्रौपदी के चीरहरण के समय ये कहा था कि जो स्त्री पांच पतियों के साथ रह सकती है, उसका क्या सम्मान। ये बात द्रोपदी के दिल में लग गई और वो अर्जुन को इस बात के लिए हमेशा उकसाती रही कि उसे कर्ण का वध करना है। वनवास के समय जयद्रथ ने द्रौपदी को जबरन अपने रथ पर बिठाकर ले जाने की कोशिश की थी। तभी पांडव आ गए थे और उन्होंने द्रोपदी को छुड़वा लिया था। उस वक्त द्रोपदी ने जयदथ का वध करने से पांडवों को रोका था और उसको अपमानित करवाकर छुड़वा दिया था। इस वज से युद्ध में जयद्रथ ने चक्रव्यूह में फंसे अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को मार डाला था।
आपको क्या लगता है की पांडव द्वारा पांच गांव की मांग का कौरवों द्वारा ठुकराया जाना और द्रोपदी का अपमान करना ही महाभारत युद्ध के कारण थे? जो कृष्ण खुद द्वारका और मथुरा के राजा थे क्या वो पांडवों को अपने राज्य में पांच गांव देकर युद्ध ना रोक लेते। पांडव इतने पराक्रमी थे की पूरे विश्व में कहीं भी आक्रमण करके किसी भी देश को जीत सकते थे। जब कौरव द्रोपदी का भरी सभा में अपमान कर रहे थे तो कृष्ण जी सिर्फ द्रोपदी की साड़ी का कपड़ा ही क्यों बड़ा कर रहे थे। वो चाहते तो दुस्साशन का गला उसी वक्त अपने चक्र से काट देते, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। यह सब मुद्दा उन्होंने जानबूझ कर बनाया ताकि विश्व को एक सीख मिल सके।
दुर्योधन की ज़िद बनी पांडवों के प्रति द्वेष और उसे हवा दी मामा शकुनि की कुचालों ने । मामा शकुनि के कुचक्र ने सबको लपेटे में लिया, धृतराष्ट्र और कौरव भाइयों को किया पथभ्रष्ट । और जायदा भयंकर रूप धारण किया वैमनस्य ने ।पांडवों से उनके अधिकार और सुख छीनने का तत्पश्चात राज पाट छीनने का भयानक षड्यंत्र। पहले उनको वनवास भेजने फिर उनकी सामूहिक मृत्यु के कुचक्र ने । पांडवों ने पिता की मृत्यु के बाद क्या क्या न सहा माता कुंती के साथ उन्होंने दुख संताप बहुत सहे । कभी मानसिक पीड़ाएं मिली कभी शारीरिक कष्ट झेले भगवद कृपा से मृत्यु के मुंह से भी निकल आए मगर सबसे जायदा आहत किया चौसर की क्रूर चालों।ने नहीं खेलना था जब जानते ना थे ये मक्कारी भरा खेल खुद भी हारे राज पाट हरा,भाई भी हार दिए थे लेकिन दाव पर घर की लाज को नहीं लगाना था। यह तो कान्हा ने बचाई लाज द्रोपदी की मगर द्रोपदी के संतप्त हृदय ने करवाया महाभारत।
इतना कुछ होने पर भी आखरी बार हक मांगना चाहा सुलह करवाने कान्हा को समझाने पांडवों ने भेजा। मगर अभिमानी और दुष्ट दुर्योधन कहां मानने वाला था यह महाभारत करवाया कौरव वंश के हठ। आखिर तो महाभारत युद्ध होकर रहा अधर्म स्कारहीनता ,षड्यंत्रों , ईर्ष्या द्वेष अन्याय ,व्याभिचार , मान मर्यादा का हनन आदि सब का अंत लाजमी था ।कौरव वंश के साथ ही सब समाप्त हो गया। इन सबकी वजह से ही हुआ महाभारत का युद्ध ।
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