धर्म डेस्क:-महाभारत संसार का सबसे भीषण युद्ध जिसमें करोड़ों योद्धाओं को अपनी जान गवानी पड़ी थी | उससे पहले न तो कभी ऐसा युद्ध हुआ था और न ही भविष्य में कभी ऐसा युद्ध होने की संभावना है | कहतें हैं कि महाभारत युद्ध के लिए इस भूमि को भगवान श्रीकृष्ण ने ही चुना था | ये युद्ध में कौरव और पांडवों के बीच सत्तो को लेकर हुआ था | जिसमें कौरव वंश का नाश हो गया था |
जब कौरव तथा पांडव की ओर से यह निश्चित हो गया की महाभारत का युद्ध होगा। तो युद्ध के लिए जमीन खोजी जाने लगी। भगवान श्रीकृष्ण जी इस युद्ध के द्वारा मनुष्यों में बढ़ी हुई असुरता से ग्रसित व्यक्तियों को नष्ट करवाना चाहते थे। परन्तु श्री कृष्ण जी को इस बात का भय था कि यह युद्ध भाई-भाइयों का, गुरु-शिष्य का, सम्बन्धी कुटुम्बियों का युद्ध है। श्री कृष्ण जी के मन में यह संदेह था की कही ये अपने ही भाइयो और सम्बन्धियों को मरते देखकर युद्ध विराम या सन्धि न कर लें। इसी कारण श्री कृष्णजी युद्ध के लिए ऐसी जगह का चयन करना चाहते थे, जहाँ क्रोध और द्वेष के संस्कार पर्याप्त मात्रा में हों। और इसी उद्देश्य से श्री कृष्ण जी ने कई दूतो को अनेक दिशाओ में भेजा ताकि उन्हें वहां की घटनाओं का वर्णन आकर उन्हें सुना।

तभी एक दूत आया और उसने श्री कृष्ण जी को बताया की अमुक जगह बड़े भाई ने अपने ही छोटे भाई को खेत की मेंड़ से बहते हुए वर्षा के पानी को रोकने के लिए कहा था। परन्तु किसी कारण छोटे भाई ने इस कार्य को करने से मना कर दिया और वो यही नही रुका उसने अपने भाई को उत्तर देते हुए कहा था की- तू ही क्यों नही रोक देता है? और मैं कोई तेरा गुलाम नही हूँ। छोटे भाई की ऐसी बाते सुनकर बड़ा भाई क्रोधित हो गया और उसने छोटे भाई को कटार निकालकर वार कर दिया जिससे छोटा भाई मर गया और उसके बाद उसकी लाश को पैरो से पकड़कर घसीटता हुआ उस मेंड़ के पास ले जा कर जिस जगह से पानी निकल रहा था उस जगह लाश को पानी रोकने के लिए रख दिया था।

भाई के प्रति भाई की इस नृशंसता को सुनने के बाद श्रीकृष्ण ने निश्चय किया महाभारत के युद्ध का इस भूमि पर होना उपयुक्त है। श्री कृष्ण के अनुसार यहाँ युद्ध के लिए पहुँचने पर समस्त लोगो के मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ेगा उससे उनके मन में एक दुसरे के प्रति प्रेम उत्पन्न होने या दोनों के मध्य सन्धि होने की सम्भावना खत्म हो जाएगी। और वह स्थान कुरुक्षेत्र ही था। इस प्रकार महाभारत के युद्ध से सम्बन्धित यह कथा सिद्ध करती है की जिस जगह जैसे संस्कार होते है वहां की भूमि में भी वैसे ही संस्कार अंतर्निहित रहते है। अर्थात शुभ और अशुभ विचार एवं कर्म संस्कार भूमि में देर तक रहते हैं। इसी कारण कहा गया है जिस जगह शुभ विचारो और शुभ कार्यो का समावेश ऐसी भूमि में ही निवास करना उपर्युक्त होता है।
महाभारत के अनुसार, कुरु ने जिस क्षेत्र को बार-बार जोता था, उसका नाम कुरुक्षेत्र पड़ा। कहते हैं कि जब कुरु इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इसका कारण पूछा। कुरु ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मारा जाए, वह पुण्य लोक में जाए, ऐसी मेरी इच्छा है। इन्द्र उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए स्वर्गलोक चले गए। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने अन्य देवताओं को भी ये बात बताई। देवताओं ने इन्द्र से कहा कि यदि संभव हो तो कुरु को अपने पक्ष में कर लो। तब इन्द्र ने कुरु के पास जाकर कहा कि राजा कुरु तुम व्यर्थ ही कष्ट कर रहे हो। यदि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर या युद्ध करके यहां मारा जायेगा तो वह स्वर्ग का भागी होगा। कुरु ने यह बात मान ली। ये बात भीष्म, कृष्ण आदि सभी जानते थे, इसलिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।
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