दक्ष के बाद सती ने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां जन्म लिया। मैनावती और हिमवान को कोई कन्या नहीं थी तो उन्होंने आदिशक्ति की प्रार्थना की। आदिशक्ति माता सती ने उन्हें उनके यहां कन्या के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। दोनों ने उस कन्या का नाम पार्वती रखा ।
मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 जन्म लिए। उनके कठोर तप के कारण 108वें जन्म में भोले बाबा ने पार्वती जी को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए यह व्रत रखती हैं। पार्वती, उमा या गौरी मातृत्व, शक्ति, प्रेम, सौंदर्य, सद्भाव, विवाह, संतान की देवी हैं। देवी पार्वती कई अन्य नामों से जानी जाती है, वह सर्वोच्च हिंदू देवी परमेश्वरी आदि पराशक्ति (शिवशक्ति) की पूर्ण साकार रूप या अवतार है और शाक्त सम्प्रदाय या हिन्दू धर्म मे एक उच्चकोटि या प्रमुख देवी है और उनके कई गुण और पहलू हैं। उनके प्रत्येक पहलुओं को एक अलग नाम के साथ व्यक्त किया जाता है।
लक्ष्मी और सरस्वती के साथ, वह हिंदू देवी-देवताओं (त्रिदेवी) की त्रिमूर्ति का निर्माण करती हैं। माता पार्वती हिंदूओ के भगवान शिव की पत्नी हैं । वह पर्वत राजा हिमवान और रानी मैना की बेटी हैं। पार्वती हिंदू देवताओं गणेश, कार्तिकेय, अशोकसुंदरी की मां हैं। पुराणों में उन्हें श्री विष्णु की बहन कहाँ गया है। शिव विश्व के चेतना है तो पार्वती विश्व की ऊर्जा हैं।
पौराणिक मान्यताओं अनुसार देवी पार्वती भगवान शिव की पत्नी सती का पुनर्जन्म है। वह पहाड़ों के स्वामी राजा हिमावन के लिए पैदा हुई थी और इसलिए कभी-कभी गिरीजपुत्री के रूप में जाना जाता है। गंभीर तपस्या और परीक्षाओं के बाद देवी पार्वती को भगवान शिव के साथ उनकी पत्नी के रूप में दोबारा जोड़ा गया। कहा जाता है कि पूर्व जन्म में देवी पार्वती राजा दक्ष की पुत्री ‘सती’ थी उनकी माता का नाम था प्रसूति था। यह प्रसूति स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थी। एक दिन मां सती ने कैलाशवासी शिव के दर्शन किए और वह उनके प्रेम में पड़ गई।
भागवत में 108 शक्तिपीठों का जिक्र है, तो देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गई है। लेकिन कुछ शक्तिपीठों का पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में होने के कारण उनका अस्तित्व खतरें में है। दक्ष के बाद सती ने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां जन्म लिया। मैनावती और हिमवान को कोई कन्या नहीं थी तो उन्होंने आदिशक्ति की प्रार्थना की। आदिशक्ति माता सती ने उन्हें उनके यहां कन्या के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। दोनों ने उस कन्या का नाम पार्वती रखा। पार्वती अर्थात पर्वतों की रानी। इसी को गिरिजा, शैलपुत्री और पहाड़ों वाली रानी कहा जाता है।
माना जाता है कि जब सती के आत्मदाह के उपरांत विश्व शक्तिहीन हो गया। उस भयावह स्थिति से त्रस्त महात्माओं ने आदिशक्तिदेवी की आराधना की। तारक नामक दैत्य सबको परास्त कर त्रैलोक्य पर एकाधिकार जमा चुका था। ब्रह्मा ने उसे शक्ति भी दी थी और यह भी कहा था कि शिव के औरस पुत्र के हाथों मारा जाएगा। शिव को शक्तिहीन और पत्नीहीन देखकर तारक आदि दैत्य प्रसन्न थे। देवतागण देवी की शरण में गए। देवी ने हिमालय की एकांत साधना से प्रसन्न होकर देवताओं से कहा- ‘हिमवान के घर में मेरी शक्ति गौरी के रूप में जन्म लेगी। शिव उससे विवाह करके पुत्र को जन्म देंगे, जो तारक वध करेगा।

भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने देवर्षि के कहने मां पार्वती वन में तपस्या करने चली गईं। भगवान शंकर ने पार्वती के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। सप्तऋषियों ने पार्वती के पास जाकर उन्हें हर तरह से यह समझाने का प्रयास किया कि शिव औघड़, अमंगल वेषभूषाधारी और जटाधारी है। तुम तो महान राजा की पुत्री हो तुम्हारे लिए वह योग्य वर नहीं है। उनके साथ विवाह करके तुम्हें कभी सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। अनेक यत्न करने के बाद भी पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रही। उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने पार्वती को सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद दिया और वे पुन: शिवजी के पास वापस आ गए। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हुए और समझ गए कि पार्वती को अभी में अपने सती रूप का स्मरण है। सप्तऋषियों ने शिवजी और पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया। पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार कर लिया।
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