गोवर्धन पूजा के लिए कहा गया है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने तूफान और बारिश से गांववासियों की रक्षा करने के लिए अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था. दीपावली के त्योहार के एक दिन बाद शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है. इस दिन लोग श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं. साथ ही उन्हें ढेरों व्यंजनों का भोग लगाते हैं. इसके अलावा इस दिन गायों की पूजा करने की भी महत्व है. गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है. गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाने की मान्यता के साथ इस दिन गोवर्धन की परिक्रमा करने की परंपरा भी प्रचलित है.

संपूर्ण गोवर्धन की परिक्रमा महत्व :- परिक्रमा शुरू करने से पहले परिक्रमा मार्ग के किसी भी एक मंदिर में पूजा करके ही आरम्भ करें और इसे जब खत्म करें तो वापस उसी मंदिर में लौट के आ जाएं .( 7 कोस ) 21 किलोमीटर की होती है जो कि मानसी गंगा से प्रारंभ की जाती है इसके मार्ग में पड़ने वाले कई महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थलों को शामिल किया गया है इनमें दान घाटी , मानसी गंगा , अभय चक्रेस्वर मंदिर , सुरभी कुंड , कुशुम सरोवर, पूछरी का लोटा , जतीपुरा , राधा कुंड , गोविन्द कुंड , संकर्षण कुंड, और गौरीकुंड इन सभी स्थानों पर राधा कृष्ण के बड़ी सुंदर लीलाएं हुई है।गोवर्धन के किसी भी कुंड में केवल पैर ना धुले बल्कि पूर्ण स्नान करें ऐसा करने से पुण्य फल मिलता है .ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन की परिक्रमा करने से व्यक्ति को इच्छानुसार फल मिलता है. वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवमार्गी लोग तो अपने जीवनकाल में इस पर्वत कम से कम एक बार परिक्रमा करते है जिस उनकी इच्छा होती है

Govardhan Puja २०२२ : दिवाली (Diwali) महापर्व के चौथे दिन होने वाली गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) का काफी महत्व माना जाता है. इसे अन्नकूट के नाम से भी पहचाना जाता है. इस साल धनतेरस से इस महापर्व की शुरुआत होने जा रही है. २२ अक्टुम्बर धनतेरस २४ को दिवाली और उसके अगले दिन २५ अक्टुम्बर को गोवर्धन पूजा की जाएगी. दिवाली के एक दिन बाद शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का पूजन भी किया जाता है. इसके अलावा भगवान को 56 भोग लगाने की भी परंपरा है. गोवर्धन पूजा के लिए घरों में गाय के गोबर से प्रतीकात्मक गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजन की परंपरा है.

पुराणों के अनुसार एक बार इंद्रा देवता क्रोध में आकर ब्रज बसियो को इतना तंग कर दिए की पूरे ब्रज में जल ही जल का भराव हो गया जिससे उनका जीवन संकट में आ गया तब श्री कृष्ण जी ने इन्द्र देवता का मान मर्दन करने के लिए अपने हाँथ की सबसे छोटी ऊँगली में पूरे पर्वत को धारण कर लिए और सभी ब्रज बसियो को गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण दिया.जिस के कारण उसी समय से गोवर्धन की पूजा की जाता है द्वापर के जब भगवान व्रिष्णु कृष्ण रूप में जन्म लेने वाले उस समय तब माता लक्ष्मी जी भगवान से कहती है की प्रभु जिस जगह गिरिराज यानि गोवर्धन , यमुना और वृन्दावन नहीं होंगे तो हमें वहां मन विचलित सा लगेगा तब भगवान ने पृथ्वी लोक में गोवर्धन पर्वत , यमुना नदी और वृन्दावन को प्रकट किया था ।
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(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
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