भगवान गणेश ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न की और उनकी दोनों पत्नियों की आत्मशक्ति के साथ उसे सम्मिलित कर लिया। इस ज्योति ने कन्या का रूप धारण कर लिया और गणेशजी की पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम संतोषी रखा गया।
एक बार गणेश जी ने अपनी पुत्री की परीक्षा लेने के लिए कुबेर देव को बुलाया और उन्हें एक घट धन रखने का कहा दिया। उनकी पुत्री ने उस घट को छु दूर तरफ़ उसे देखा तक नहीं। जिससे भगवान गणेश ने अपनी पुत्री का नाम संतोषी रखा और उन्हें संतोष की देवी बना दिया।संतोषी माता हिंदू धार्मिक मान्यताओं की देवी हैं जिनका शुक्रवार का व्रत किया जाता है। संतोषी माता पिता का नाम गणेश और रिद्धि-सिद्धि है। और उसे दो भाई शुभ और लाभ थे | संतोषी माता के पिता गणेश और माता रिद्धि-सिद्धि धन, धान्य, सोना, चांदी, मूंगा, रत्नों और ज्ञान से भरा पूरा परिवार है। इसलिए उनको प्रसन्न करने से फल मिलता है कि वो परिवार में सुख-शांति और मनोंकामनाओं को पूरा शोक, विपत्ति, चिंता परेशानियों को दूर कर देती हैं।
मां संतोषी ,संतोष की देवी हैं। मां संतोषी प्रेम, संतोष, क्षमा, खुशी और आशा की प्रतिक हैं जो उनके शुक्रवार की व्रत कथा में कहा गया है। यह बहुत माना जाता है की लगातार 16 शुक्रवार को व्रत और प्रार्थना करने से भक्तों के जीवन में शांति और समृद्धि व्याप्त होती है। मां संतोषी व्यक्ति को पारिवारिक मूल्यों का और दृढ़ संकल्प के साथ संकट से बाहर आने के लिए प्रेरित करती हैं। संतोषी मां को मां दुर्गा का ही अवतार मानी जाता हैं |
शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के साथ मां संतोषी की भी अराधना की जाती है। मान्यता है कि माता संतोषी के व्रत रखने से सभी मनोकामनाओं की पूण होती है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी के पिता गणेश और माता रिद्धि-सिद्धि हैं। माना जाता है कि संतोषी व्रत के प्रभाव से साधक को कभी पैसों की तंगी नहीं होती है | लेकिन इस व्रत के कुछ नियम हैं जिन्हें जानना जरूरी है।

संतोषी माता व्रत की विधि: सूर्योदय से पहले उठकर घर के सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके पश्चात पूजा प्रारंभ करें। घर में किसी पवित्र स्थान पर संतोषी माता की मूर्ति रखें। मूर्ति के पास बड़े बर्तन में जल भरकर रखें और उसमें थोड़ा गुड़ और चने मिला दें। घी का दीपक जलाएं और माता संतोषी की व्रत कथा सुनें। कथा सुनने और सुनाने वाले हाथ में गुड़ और चना लें।माता को अक्षत, फूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें।इसके साथ ही भोग के रूप में गुड़ व चने खिलाएं। पूजा सम्पन्न होने के बाद गुड़ और चने का प्रसाद सभी में बांट दें। रखा हुआ जल पूरे घर में छिड़क दें। इस व्रत में नियमानुसार 16 शुक्रवार व्रत रखना होता है। अंतिम व्रत के दिन उद्यापन के लिए 8 बच्चों को खीर पूरी का भोजन कराएं। साथ ही सभी को केले का प्रसाद भी दें
ऐसा मन गया है कि महिलाएं शुक्रवार को खट्टा खाने से परहेज करती हैं। इस दिन खट्टा नहीं खाने के पीछे खास रीजन जरूर होता है।मनचाहा वरदान पाने के लिए लड़कियां और महिलाओं व्रत रखती हैं। और हफ्ते में एक दिन फ्राइडे होता है जहां महिलाएं शुक्रवार को ही खट्टा नहीं खाती हैं। शुक्रवार का दिन मां संतोषी को समर्पित होता है। इस दिन महिलाओं को खट्टा नहीं खाना चाहिए। लड़कियां इस दिन बाहर का भी कुछ नहीं खाती। शुक्रवार को संतोषी माता की पूजा की जाती हैं। इस पूजा और व्रत का खास महत्व है। महिलाएं इस दिन टमाटर भी नहीं खाती हैं। वो घर की सब्जियों में ऐसा कुछ नहीं मिलाती हैं उसमें खट्टापन हो
प्रमाण :-
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(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
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