धर्म डेस्क-भगवान शिव के कई रूप है उन्हीं रूपों में से एक है अर्धनारीश्वर का रूप जिसका अर्थ है कि आधा हिस्सा नारी का और आधा नर का। इस आधे स्वरूप में भगवान शिव अपनी पत्नी उमा के साथ अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। कहा जाता है कि नर और मादा ऊर्जा का संश्लेषण सभी सृजन का आधार है। इसलिए शिव और शक्ति एक साथ मिलकर इस ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं।
हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा सदियों से हो रही है। कहा जाता है कि जो कोई भी भगवान शंकर की पूजा सच्चे मन से करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता पार्वती और महादेव के अप्रतिम प्रेम से पूरा संसार वाकिफ है। कुंवारी लड़कियां भी सोमवार का व्रत और भोलेनाथ की पूजा इसलिए करती हैं ताकि उन्हें शिवजी की तरह पति मिले। शिव जी को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है। इस रूप के जरिए भोलेनाथ लोगों को संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष दोनों समान हैं।
तो चलिए जानते हैं इस महत्वपूर्ण कथा के बारे में विस्तार सेसृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी हैं। शिव जी के अर्धनारीश्वर रूप को लेकर कई मान्यताएं हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था, तब तक शिव जी ने सिर्फ विष्णु और ब्रह्मा जी को ही अवतरित किया था और किसी भी नारी की उत्पत्ति नहीं हुई थी। जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का काम शुरु किया, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी ये सारी रचनाएं जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी और हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा।
उनके सामने ये एक बहुत ही बड़ी दुविधा थी कि इस तरह से सृष्टि की वृद्धि आखिर कैसे होगी। गहन विचार के बाद भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पाए। तब अपने समस्या के समाधान के लिए वो शिव की शरण में गए।
उन्होंने शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। ब्रह्मा के कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए और ब्रह्मा जी की समस्या के समाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। शिव जी ने जब इस स्वरूप में दर्शन दिया तब उनके शरीर के आधे भाग में साक्षात शिव नजर आए और आधे भाग में स्त्री रूपी शिवा यानि शक्ति। अपने इस स्वरूप के दर्शन से भगवान शिव ने ब्रह्मा को प्रजनन शील प्राणी के सृजन की प्रेरणा दी। उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे इस अर्धनारीश्वर स्वरूप के जिस आधे हिस्से में शिव है वो पुरुष है और बाकी के आधे हिस्से में जो शक्ति है वो स्त्री है।
शिव जी ने ब्रह्माजी से कहा कि आपको स्त्री और पुरुष दोनों की मैथुनी सृष्टि की रचना करनी है, जो प्रजनन के जरिए सृष्टि को आगे बढ़ा सके। इस तरह शिव से शक्ति अलग हुईं और फिर शक्ति ने अपनी मस्तक के मध्य भाग से अपनी ही तरह कांति वाली एक अन्य शक्ति को प्रकट किया। इसी शक्ति ने फिर दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिसके बाद से मैथुनी सृष्टि की शुरुआत हुई।
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