धर्म डेस्क:-स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक जी के शरीर का अंतिम संस्कार करा दिया था। बस शीश का अंतिम संस्कार नहीं किया गया था। क्योंकि देवियों से आवाहन करके, भगवान श्री कृष्ण ने उनके शीश को अमृत से सिंचित करवा दिया था। फिर उनके शीश को अमरता व पूजित होने का वरदान दे दिया था। इस तरह शीश तो पूजित हो गया था। लेकिन धड़ का अंतिम संस्कार करवा दिया गया था।
महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद। बर्बरीक के शीश ने पांडवों के अभिमान का मर्दन किया था। इसके बाद, भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को पूजनीय होने का आशीर्वाद दिया। पूजनीय होने का यह आशीर्वाद, हमें स्कंध पुराण के कौमारी खंड में मिलता है। इसके बाद बर्बरीक के उस अमर शीश को, पास में बहने वाली रुपमती नदी में प्रवाहित करवा दिया गया। यह रुपमती नदी, खाटू से होकर जाती थी।

बर्बरीक का शीश बहते-बहते खाटू पहुंचा। फिर आज वो नदी कहां है। तो महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद। अश्वत्थामा कौरव वंश के सर्वनाश से बहुत ज्यादा क्रोध में आ गए। उन्होंने ब्रम्हास्त्र का संधान किया। यह देखकर अर्जुन ने भी ब्रम्हास्त्र का संधान किया। भगवान कृष्ण जानते थे। कि अगर दोनों तरफ से ब्रम्हास्त्र चलेंगे। तो दोनो की तरफ का सर्वनाश होना, निश्चित है। भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा और अर्जुन को बहुत समझाया। उनकी बात मानकर अर्जुन ने तो ब्रम्हास्त्र को वापस ले लिया। लेकिन अश्वत्थामा को ब्रम्हास्त्र वापस लेने की कला नहीं आती थी। कहा जाता है कि उस समय अश्वत्थामा ने ब्रम्हास्त्र को उसी जगह छोड़ा। जो आज का राजस्थान है। उसकी गर्मी से, वहां जो नदियां व जल-स्रोत थे। वो सब सूख गए। लेकिन बाबा श्याम का शीश खाटू में ही रह गया। खाटू धाम में श्याम कुंड, एक प्राकृतिक कुंड है। यहीं पर बाबा श्याम का शीश प्रकट हुआ।
इसलिए खाटू धाम की यात्रा रींगस से शुरू होती है बाबा श्याम का शीश रींगस से होकर ही खाटू धाम तक गया था। जिसके कारण, भक्तजन रींगस से खाटू तक की जमीन को पवित्र मानते हैं। इसीलिए रींगस से श्याम प्रेमी निशान यात्रा लेकर, नंगे पैर खाटू धाम तक जाते हैं।
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(आपकी कुंडली के ग्रहों के आधार पर राशिफल और आपके जीवन में घटित हो रही घटनाओं में भिन्नता हो सकती है। पूर्ण जानकारी के लिए कृपया किसी पंड़ित या ज्योतिषी से संपर्क करें।)
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