धर्म डेस्क:- मिथिला के नरेश जनक के महल में पली बड़ी सीता माता का चरित्र परम गौरव शाली हैं। वाल्मीकि जी ने अपनी रामायण में सीता के चरित्र को वर्तमान के लिए आदर्श बताया हैं। जब राजा जनक खेत में हल जोत रहे थे, तब एक कन्या हल के नीचे मिली, राजा जनक ने उस कन्या का नाम सीता रख दिता। सीता का अर्थ होता हैं – हल की नोंक। इस प्रकार इसका कोई वास्तविक प्रमाण नहीं हैं कि सीता माता के असली माता पिता कौन हैं। सीता माता दो बार वनवास गयी। रावन की लंका में माता सीता को रावन ने खूब धमकाया और डराया। लेकिन माता सीता को अपने पत्नी धर्म पर पूरा विश्वास था कि श्री राम जरूर आयेंगे।

जब लव कुश बड़े हो गए तब वे दोनों अपने गुरु वाल्मीकि के आदेशानुसार अयोध्या में गए तथा सभी को रामायण कथा सुनायी। अंत में उन्होंने राज दरबार में स्वयं को श्रीराम तथा माता सीता का पुत्र बताया। इसके पश्चात अयोध्या की प्रजा के द्वारा इस पर प्रश्न चिन्ह लगाया गया। श्रीराम ने जब यह सुना तो लोकमत को ध्यान में रखकर उन्होंने सीता को स्वयं यहाँ आकर इसका प्रमाण देने को कहा तथा अपनी शुद्धता की शपथ लेने का आदेश दिया। अगले दिन महाऋषि वाल्मीकि माता सीता और लव कुश को साथ लेकर राज सभा मेंआते हैं। श्री राम को वाल्मीकि जी बताते हैं की लव कुश माता सीता और आपके ही पुत्र हैं तो इस पर श्री राम, वाल्मीकि जी से विनीति करते हैं कि मुझेआपकी इस बात पर पूर्ण विश्वास है कि लव कुश मेरे पुत्र हैं परंतु यही बात यदि सीता सभी नगर वासी और राज्य सभा के सदस्यों के सामने खुद कहेगी तोसभी को यक़ीन हो जाएगा।

जब माता सीता राज दरबार में पहुंची तो वहां सभी के सामने उन्हें अपनी शुद्धता की शपथ लेने को कहा गया। यह सुनकर माता सीता ने सभी के सामने शपथ ली कि यदि उन्होंने मन, वचन तथा कर्म से केवल भगवान श्रीराम की ही आराधना की हैं तथा उन्हें ही अपना पति माना हों तो इसी समय यह धरती फट जाये तथा वे उसमे समा जाये। माता सीता को अपने पतिव्रता होने का प्रमाण आज दुबारा देना पड़ रहा था जिस से उन्हें बहुत दुःख पहुँच रहा था जैसे ही वो ये सब सुनती है तो वो धरती माँ को प्रकट होने के लिए कहती हैं और उनसे विनीति करती हैं की यदि उनके चरित्र में कोई भी त्रुटि या दाग़ ना हो और उनकेजीवन में सिर्फ़ श्री राम ही हों तो उन्हें अपनी गोद में समा ले ताकि सभी को उनके पवित्र होने का विश्वास हो जाए। धरती माता तभी प्रकट हो जाती हैं और सीता की पवित्रता का प्रमाण सभी को मिल जाता है। माता सीता धरती माँ के साथ चली जाती हैं, श्री राम माता सीता को रोकने के लिए आगे बढ़ते हैं पर रोक नहीं पाते।
प्रमाण :-
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